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उम्मीदें

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उम्मीदें

मैंने कई बार सुना है की जब कुछ लोग खुद के लिए कुछ नी कर पातें हैं न उन्हे अपनी मंजिल पता होती है न कोई उम्मीद बकीं रह जाती है तो वो कई कश्मकश से घिरने लगतें हैं,  ऐसा नही है की वो करना नहीं चाहते बस कहीं ना कहीं रुक जाते हैं, हार जाते है वो अपनी आदतों से या शायद अपने विचारों से। होतें हैं कई लोग जो दूसरों पर जान छिड़कते हैं पर खुद अकेले होते हैं। ना जाने कितने लोगों को देखा है मैंने जो खुद की खुशियाँ दूसरों के हिस्से मे डाल लेतें है । अपना वक़्त जरुरतमंदो को दे देतें हैं।

एक लड़की थी नैरा नाम की बहुत संघर्ष था उसके जीवन मे हर दिन उसे कोई ना कोई मुसीबत से लड़ना पड़ता था कभी तो वो डंटकर सामना करती थी और कभी कभार टूट जाती थी पर हिम्मत थी उसमे और एक दिन खुद की मदद करने के लिए वो एक मनोचिकिस्तिक से मिली और उसने उन्हे अपनी सारी समस्या बताई और कहा की मे कितनी भी कोशिश  करूँ पर खुद के लिए कुछ करना मुझसे नहीं होता , में कोशिश करते करते हार गई हूँ। मेरे पास खुद के लिए कोई वजह नही जीने के लिए तो क्या करूँ में आप बताइये।

कई महीनों तक उसने उन्होंने से मदद ली पर उससे नैरा को कुछ खास मदद नहीं मिली और ना कोई मकसद और एक दिन अपने जिंदगी को खत्म करने का फैसला ले लिया और वो जाकर अपने टेरेस पर खड़ी हो गई और वो सारी बातें दोहराने और सोचने लगी जो उसके साथ हुई है  और जो उसने देखा, सुनी और समझी हैं। तभी उसकी नजर एक चार साल की लड़की पर पड़ती है जिसे कपड़े फट्टे होते हैं और वो भूख से तड़प रही होती है  और ये नैरा से नही देखा जाता है और जल्द ही उसके पास जाकर उसकी मदद करती है उसे खाना खिलाती है और उसके माँ बाप के बारे मे पूछती हैं तो वो लड़की कहती है की पता नहीं दीदी मुझे सब अनाथ कहते हैं इसका मतलब क्या होता है।

नैरा उसे गले से लगा लेती है और लड़की को सुलाकर वो फिर टेरेस मे जाती है और जब वो दूर दूर तक देखती है तो न जाने ऐसे कई बच्चे, कमजोर बूढ़े लोग उसे दिखतें हैं। और वो उस वक़्त ठान लेती है की अब वो ऐसे बेसहारा लोगों के लिए जियेगी।।

अर्थात जब भी आप खुद को किसी लायक न समझें तब अपने आस पास की दुनिया देखना न जाने किसी और किस मोड़ पर कोई आपकी मदद की तलाश मे हो। भगवान कभी किसीको बेवजह नहीं बनाता बस कुछ लोग खुद मे वजह ढूढ़ लेतें हैं और कुछ अपनी जिंदगी को किसी और मे जी लेतें हैं। हर इंसान अगर खुद का सोचे तो कैसे चलेगी ये दुनिया।

“अगर मेरे कुछ आँसुं से किसको दो पल की खुशी मिल रही है तो किसीकी उम्मीद बनने मे क्या हर्ज है,

“जब इतने जख्म है इस दुनिया मे तो किसीको तो दवा बनना है, किसको तो कबूल हुई किसी की दुआ बनना क्योंकि न जाने यहाँ कितने मर्ज़ है “।।

गार्गी शुक्ला

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